जनपद हरिद्वार के छात्रों ने उत्तराखण्ड के फाॅरेस्ट रिर्सच इंस्टीट्यूट (एफआरआई) व आनंद वन देहरादून का भ्रमण कर स्वयं में वैज्ञानिक दृष्टिकोण व पर्यावरण जैव संवर्द्धन का विस्तार किया

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रुड़की (ब्यूरो रिपोर्ट)

जनपद हरिद्वार के छात्रों ने उत्तराखण्ड के फाॅरेस्ट रिर्सच इंस्टीट्यूट (एफआरआई) व आनंद वन देहरादून का भ्रमण कर स्वयं में वैज्ञानिक दृष्टिकोण व पर्यावरण जैव संवर्द्धन का विस्तार किया। भगवानपुर स्थित पीएमश्री राजकीय अटल उत्कृष्ट माध्यमिक विद्यालय के 210 विद्यार्थियों ने प्रधानाचार्य भीकम सिंह के नेतृत्व में यह शैक्षिक भ्रमण मंगलवार को किया। जिनमें 80 छात्र और 130 छात्राओं के साथ विद्यालय के समस्त अध्यापक व अध्यापिकाएं भी इस भ्रमण में शामिल रही।
एफआरआई देहरादून छात्रों, युवाओं सहित सभी वर्गों के लिए दर्शनीय स्थल है। यह वैज्ञानिक नजरिए को बढ़ाता है और हमारे अंदर अतार्किक अवधारणाओं को हतोत्साहित भी करता है। यहां पर कई सौ वर्ष पुराने वृक्ष व काष्ठ कला में आकर्षण का केन्द्र वन सम्पदा के साथ फंगस परिवार भी है। छह गेलोरी में विभाजित वन्य सम्पदा वैज्ञानिक सोच को विकसित करता है। मनुष्य के भोजन, वस्त्र मानसिक, शारीरिक, वैज्ञानिक, विकास यात्रा को समझने के लिये एफआरआई सहायक संस्थान है। आनंद वन झाझरा में स्थित एक बनावटी माहौल बनाकर दर्शकों को जंगलों का प्राकृतिक माहौल उपलब्ध कराया जाता है। सुन्दर प्राकृतिक वातावरण मन को सुकून तो देता ही है। देहरादून के झाझरा में यह पार्क जंगली जानवरों के आभासी निर्माण से उन्हें समझने की सोच को बढ़ावा देता है। यहाँ पर स्थित झरना आकर्षण का केन्द्र बिन्दु है। बन्दर, लंगूर, बाघ, कोबरा, हाथी, चीता आदि का आभासी निर्माण आकर्षित और अंचभित करता है। यह स्थल साढे तीन साल में बना है तथा इसका विस्तार हो रहा है। इसको पूर्व वन संरक्षक जयराज की आध्यामिक व प्रकृति प्रेमी धर्मपत्नी सादिया जयराज ने किया है। यह स्थल पर्यावरणीय और भौगोलिक घटनाओं को समझने के लिए शानदार अध्ययन केन्द्र तो है ही। उन्होंने कोरोना काल में भी इस जगह का संवर्द्धन किया। जोजो नाम के बंदर के बच्चे को पालने व उसके मौत के बाद उन्होंने स्मृति पुल बनाना उनके अंदर के उत्कृष्ट मानवीय गुण को दर्शाता है। यहाँ पर बांस से सुंदर आकर्षक कुटियाँ भी प्राचीन संस्कृति को दर्शाती हैं। इसी प्रकार उत्तराखण्ड की महिला का पुतला पनघट से पानी भरते हुये ग्रामीण महिला की मेहनत बताती है। जीवन की बातें और घटनाएं, जो हमें प्रभावित करती हैं, उसके वैज्ञानिक पहलूओं को प्रायोगिक तौर पर यहां आसानी से समझा जा सकता है। विद्यार्थियों के लिए ही नहीं समाज के हर वर्ग के नागरिकों को वन और जानवरों की बारीकियों को समझने में यहां भरपूर मदद मिलती है। आने वाले समय में प्रदेश की संस्कृति व उनके वनों से जुडाव को भी यहां और रेखांकित किया जाएगा। आनंद वन 126 एकड (50 हेक्टेयर) भूमि पर जंगल के किनारे डेवलप किया गया है और इसमेंआस पास के जीव जंतुआंे का भी ध्यान रखते हुए एक सियोक्सीटेंस का सफल माॅडल प्रस्तुत किया गया है। इसकी कुल लागत बनाते समय 43 लाख के लगभग रही और तीन साल की अवधि में लगभग एक करोड का रेवेन्यू सरकार को दे चुका है। इस शैक्षिक भ्रमण में छात्र-छात्राओं ने हिमालय से भारत ही नहीं राज्य के जल, जंगल और जमीन के विकास क्रम को समझा। पहाड़, नदियों, पुलों से मनुष्य की विकास यात्रा को समझा। आनंद वन मनुष्य के जल, जमीन और जानवरों के संतुलन की आवश्यकता को समझाने में सहायक है। यात्रा संयोजक प्रधानाचार्य भीकम सिंह का कहना है कि समय-समय पर विद्यार्थियों को ऐसे वैज्ञानिक संस्थानों और वनों का भ्रमण कराया जाना चाहिए।

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