परमार्थ निकेतन में आयोजित इन्टरनेशनल योग टीचर ट्रेनिंग कोर्स का समापन

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परमार्थ निकेतन में आयोजित इन्टरनेशनल योग टीचर ट्रेनिंग कोर्स का समापन*

*वैश्विक योग जिज्ञासुओं का सहभाग*

ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन, आयोजित इन्टरनेशनल योग टीचर ट्रेनिंग कोर्स के समापन के अवसर पर वैश्विक योग जिज्ञासुओं ने परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और डिवाइन शक्ति फाउंडेशन की अध्यक्ष साध्वी भगवती सरस्वती जी से भेंट कर धर्म, संस्कृति व अध्यात्म से संबंधित अपनी जिज्ञासाओं का समाधान प्राप्त किया।

परमार्थ निकेतन में आयोजित योग टीचर ट्रेनिंग कोर्स, क्रिया योग, फाउंडेशन योग कोर्स, प्रतिवर्ष होने वाला अन्तर्राष्ट्रीय योग महोत्सव भारत सहित पूरी दुनिया के योग जिज्ञासुओं के लिए एक अवसर हैं, जहाँ उन्होंने योग के गहन सिद्धांतों, ध्यान व प्रणायाम की विभिन्न विधाओं के साथ सत्संग व पवित्र गंगा आरती से जुड़ना का सौभाग्य भी प्राप्त होता है।

योग सिर्फ एक शारीरिक व्यायाम नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला और चेतना का पोषण है। इस कोर्स में शामिल प्रतिभागियों ने विशिष्ट योगाचार्यों के मार्गदर्शन में आसन, प्राणायाम, ध्यान और योग दर्शन के विविध आयामों का अभ्यास किया। प्रत्येक सत्र में शारीरिक स्वास्थ्य को सुदृढ़ करने के साथ मानसिक शांति और आत्मिक जागरूकता हेतु भी विशेष अभ्यास कराया गया।

योगाचार्यों ने सत्रों के माध्यम से प्रतिभागियों को बताया कि योग का उद्देश्य जीवन में संतुलन, अनुशासन और पूर्णता लाना है। योग की गहन शिक्षाएँ, जैसे अष्टांग योग, प्राणायाम की विधायें, मंत्रों का शुद्ध उच्चारण और ध्यान सभी के लिए सहज कैसे बनायी जाये इस पर विशेष जोर दिया गया।

साथ ही योग जिज्ञासुओं को स्वामी जी व साध्वी जी के द्वारा दिये उद्बोधन, मार्गदर्शन व सत्संग के माध्यम से स्वयं से जुड़ने, तनाव मुक्त जीवन जीने, अपनी चेतना को जागृत करने का अवसर भी प्राप्त हुआ।

इस अवस पर स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि भारत भूमि सदैव से अध्यात्म, संस्कृति और करुणा की जननी रही है। यहाँ की परम्पराएँ जीवन में समरसता, सेवा और संस्कार के रूप में जीवंत हैं। भारत की समृद्ध परम्परा हमें स्मरण कराती है कि “वसुधैव कुटुम्बकम्” समस्त सृष्टि एक परिवार है यही भावना भारत को विश्व में अद्वितीय बनाती है।

स्वामी जी ने कहा कि योग, ध्यान, आयुर्वेद और सनातन दर्शन हमारी संस्कृति के ऐसे स्तंभ हैं जो मानवता को शांति, संतुलन और सह-अस्तित्व का मार्ग दिखाते हैं। जब हम इन शिक्षाओं को अपनाते हैं तो हर प्रकार की सीमाएँ मिट जाती हैं और आपस में सेतु का निर्माण होता है। यही सेतु मानवता की एकता का प्रतीक है। उन्होंने योग जिज्ञासुओं से कहा कि आप सब अपने साथ एकता, समरसता व अद्भाव का संदेश लेकर जायें।

साध्वी भगवती सरस्वती जी ने कहा कि योग हमें बाहरी हलचल से भीतर की स्थिरता की ओर ले जाता है। जब हम सांस के साथ जुड़ते हैं, तो ईश्वर से जुड़ते हैं। यह कोर्स केवल प्रमाणपत्र पाने का नहीं, बल्कि जीवन को परिवर्तित करने का अवसर है।

योग जिज्ञासुओं ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि योगाचार्य आभा सरस्वती जी द्वारा योग और ध्यान की विधाओं के साथ जब मंत्र, ध्वनि और नाद का समन्वय किया जाता है, तो योग साधना का प्रभाव और गहराई कई गुना बढ़ जाती है। उनके द्वारा उच्चारण किये मंत्रों की स्पंदनात्मक ऊर्जा मन को एकाग्र करती है, ध्वनि आत्मा को शुद्ध करती है और नाद हमें भीतर की मौन चेतना से जोड़ता है। उन्होंने कहा कि यह समन्वित योगाभ्यास केवल शरीर को नहीं, बल्कि मन, हृदय और आत्मा को भी जाग्रत करता है। ऐसा अनुभव दुर्लभ है।

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