उत्तराखंड में अपनी ही सरकार के खिलाफ केस लड़ेंगे भाजपा नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी, पढ़िए पूरी खबर….

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हरिद्वार । जाने माने वकील, भाजपा नेता एवं पूर्व सांसद सुब्रह्मण्यम स्वामी उत्तराखंड विधानसभा सचिवालय के बर्खास्त 228 कर्मचारियों की पैरवी के लिए रविवार को हरिद्वार पहुंचे। उन्होंने एक प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए कहा कि मैं इन बर्खास्त कार्मिकों की नि:शुल्क पैरवी करूंगा। उन्होंने इस बात पर हैरानी जताई कि बिना कारण बताओ नोटिस के इन कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया गया। स्वामी ने कहा कि सरकार का मकसद रोजगार देना होना चाहिए ना कि रोजगार छीनना। सुब्रह्मण्यम स्वामी ने कहा कि उत्तराखंड विधानसभा सचिवालय में भर्ती प्रक्रिया साल 2001 से 2022 तक एक समान है। इसको विस अध्यक्ष की ओर से गठित कोटिया कमेटी ने भी अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट किया है। उत्तराखंड सरकार के महाधिवक्ता भी इस पर अपनी राय देने से इनकार कर चुके हैं। यदि नियुक्तियों में नियमों का उल्लंघन हुआ है तो वह उत्तराखंड राज्य गठन के बाद से ही हुआ है।

वरिष्ठ अधिवक्ता ने सवाल किया कि यह कहां का न्याय है, कि वर्ष 2001 से 2015 की नियुक्ति को संरक्षण दिया जा रहा है। वहीं वर्ष 2016 से वर्ष 2022 तक के कार्मिकों को 7 साल की सेवा के बाद एक पक्षीय कार्रवाई के जरिए बर्खास्त कर दिया गया है। मैं इस फैसले की घोर निंदा करता हूं। मुझे पता चला है कि साल 2017 में इस मसले पर एक जनहित याचिका हाईकोर्ट नैनीताल में दायर हुई थी। वर्ष 2018 में हाईकोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट ने कर्मचारियों के पक्ष में फैसला सुनाया और नियुक्तियों को वैध करार दिया। उस समय इसी विधानसभा ने कार्मिकों के पक्ष में उच्च न्यायालय में काउंटर एफिडेविट फाइल किया और नियुक्तियों को वैध बताया। अब वर्ष 2022 में यही विधानसभा यू-टर्न लेकर नियुक्तियों को अवैध बता रही है। यह तो हैरान करने वाली बात है।

सुब्रह्मण्यम स्वामी ने कहा कि बिना कोई वजह बताए, बिना शो कॉज नोटिस दिए। बिना सुनवाई का अवसर दिए। कर्मचारियों को बर्खास्त कर देना नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत की मूल भावना के विपरीत है। एक ही संस्थान में एक ही प्रक्रिया से नियुक्ति पाए कार्मिकों की वैधता में दो अलग-अलग फैसले कैसे दिए जा सकते हैं। कुछ लोगों की नियुक्ति को अवैध बताने के बाद भी बचाया गया है जबकि कुछ लोगों को अवैध करार देकर भेदभाव पूर्ण रवैया अपनाया गया है। उन्होंने कहा- बर्खास्तगी की यह कार्यवाही कहीं से भी उचित नहीं लगती। यहां एक विधान एक संविधान का उल्लंघन हुआ है। मैंने बीते दिनों उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को पत्र लिखकर बर्खास्त कार्मिकों की बहाली के लिए अनुरोध किया था। उस पत्र पर क्या कार्रवाई हुई, उन्हें अभी नहीं पता। मैं बर्खास्त कार्मिकों की आवाज बन कर आया हूं। मैं चाहता हूं उत्तराखंड के इन युवाओं के साथ न्याय हो।

स्वामी ने कहा कि यहां एक विधान एक संविधान की परिभाषा को कलंकित करने का काम किया गया है। अगर उत्तराखंड सरकार और विधानसभा सचिवालय मेरे लिखे पत्र पर विचार नहीं करती है तो मैं निर्दोष कार्मिकों के पक्ष में हाईकोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट में नि:शुल्क पैरवी करूंगा। उत्तराखंड सरकार और विधानसभा सचिवालय को चाहिए कि कार्मिकों के संबंध में सर्वदलीय बैठक बुलाकर या फिर किसी अन्य प्रक्रिया से सकारात्मक फैसला लेकर उनकी बहाली की जाए।

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