रुड़की (ब्यूरो रिपोर्ट)
हजरत साबिर पाक के 755वें उर्स के मौके पर आयोजन समिति द्वारा ऑल इंडिया नातिया मुशायरा पानीपत दरगाह के सज्जादा नशीन मखदूमजादा पीर निसार अहमद उस्मानी की सदारत में किया गया, जिसमें देशभर से आये शायरों ने अपने-अपने कलाम के जरिए मनकबत, साबिर पाक की शान में सलाम और नातिया कलाम पेश किये। मुख्य अतिथि के रुप में उत्तराखंड हज कमेटी के चेयरमैन हाजी खतीब अहमद ने शिरकत करते हुए कहा कि साबिर पाक की दरगाह हम सबके लिए कौमी एकता के साथ-साथ रुहानियत का केंद्र भी है, जहां आकर सबको शांति, प्रेम और सौहार्द का वातावरण मिलता है। खतीब ने कहा कि आज के हालात में इस पैगाम को और आगे बढ़ाने की जरूरत है। मुशायरे की अध्यक्षता कर रहे प्रसिद्ध सूफी स्काॅलर और पानीपत की हजरत जलालुद्दीन कबिरुल औलिया की दरगाह के सज्जादा नशीन मखदूम जादा पीर निसार अहमद उस्मानी ने कहा कि हमारे देश की मिट्टी के खमीर में प्राचीन काल से ही आपसी प्रेम और भाईचारे की खुशबू मौजूद है, जिसको सूफियों ने अपने संदेश के माध्यम से पूरे विश्व में फैलाया है। उन्होंने कहा कि अमीर खुसरो, मलिक मोहम्मद जायसी और शेख इब्राहिम रसखान, कबीर और नजीर ने कई सौ वर्षों पूर्व इस सन्देश को अपनी रचनाओं के द्वारा आम जन तक फैलाया। मुशायरे के मुख्य संयोजक व उर्स कार्यक्रम आयोजन समिति के अध्यक्ष अफजल मंगलोरी ने कहा कि मुशायरा और महफिल ए किरात के दोनों कार्यक्रम 150 वर्षों से उर्स के रिवायती प्रोग्रामो में शामिल होते रहे है, जो वक्फ बोर्ड की ओर से आर्थिक फंड से किये जाते थे, मगर पिछले 6 वर्षों से वक्फ बोर्ड ने दोनों प्रोग्रामो के लिए कोई फंड नही दिया, जिस कारण इस पुरानी परम्परा को कायम रखते हुए वे अपने स्तर से कराते आ राहे हैं। इस बार भी दोनों कार्यक्रमों के लिए दरगाह या वक्फ बोर्ड से कोई फंड आवंटित नही किया गया। मुशायरे का संचालन देश के प्रमुख शायर जिगर देवबन्दी ने किया। मुशायरे में कैराना से आये शायर उस्मान कैरानवी ने वाहवाही लूटते हुए पढ़ा कि-ः औरों को अताकर तू तबर्रुक में दौलते। या रब मुझे तो साबरी दरबार चाहिए।। मशहूर शायर ओमप्रकाश नूर ने फरमाया कि- जिसको पढ़ते हो तुम किताबों में। वो मोहब्बत मिलेगी कलियर में।। कारी मेहरबान बेहट ने तरन्नुम से पढ़ा किः- पिलाता है कोई भर-भर के पैमाने मोहब्बत के। खुला है जब से मैखाना अलाउद्दीन साबिर का।। लखनऊ से तशरीफ लाये उस्ताद शायर ओम प्रकाश नदीम ने फरमाया किः- यहाँ मजहब किसी का कौन जाने।। दर ए साबिर, दर ए इंसानियत है।। संयोजक अफजल मंगलोरी ने पढ़ा किः- हो मुबारक तुम्हे दुनिया की बहारे लोंगो। मेरे हिस्से में ये गूलर की हवा रहने दो।। देहरादून से आये शायर समीर कमर ने अपने कलाम में आशा व्यक्त की किः- मुझे यकीन है दामन मेरा भरेगा जरूर। मैं जब भी हाथ उठाऊंगा बस दुआ के लिए।। इसके अलावा नफीस देवबन्दी, नदीम कुरेशी बरेलवी, मो. अनस एडवोकेट, दानिश बरेलवी आदि ने भी कलाम पेश किए। इस अवसर पर बिलाल उस्मानी, अहमद उस्मानी, सलीम अंसारी, नईम सिद्दीकी एडवोकेट, सलमान अंसारी भी मौजूद रहे। अंत में सदर मखदूम जादा पीर निसार उस्मानी ने देश की सलामती और तरक्की की दुआ कराई।